भारतीय कुश्‍ती के पितामाह थे गुरू हनुमान, देश को दिए थे कई दिग्‍गज पहलवान

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भारत के महान कुश्ती कोच और पहलवान थे गुरु हनुमान. उन्‍होंने पुरे वर्ल्ड में भारतीय कुश्‍ती को महत्त्वपूर्ण स्‍थान दिलाया था.

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भारतीय कुश्‍ती के पितामाह माने जाने वाले गुरु हनुमान यानी विजय पाल गुरुओं के गुरु थे.

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गुरु हनुमान का जन्म राजस्थान के झुंझुनू ज़िला के चिड़ावा तहसील में 1901 में हुआ था. गुरु हनुमान का बचपन का नाम विजय पाल था.

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बचपन में कमज़ोर सेहत का होने के कारण अक्सर ताक़तवर लड़के इन्हें तंग करते थे. इसलिए उन्होंने सेहत बनाने के लिए बचपन में ही पहलवानी को अपना लिया था.

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कुश्ती के प्रति अपनी लगन और प्रेम के चलते 20 साल की उम्र में दिल्ली आ गए. भगवान हनुमान से प्रेरित होकर इन्होंने अपना नाम हनुमान रख लिया और ताउम्र ब्रह्मचारी रहने का प्रण कर लिया.

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कुश्ती के प्रति उनकी लगन के चलते मशहूर भारतीय उद्योगपति के.के बिरला ने उन्हें दिल्ली में अखाडा चलने के लिए ज़मीन दान में दी थी.

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साल 1940 में वो आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए. 1947 के बाद हनुमान अखाडा दिल्ली पहलवानों का मंदिर हो गया था. 

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समय के साथ उन्‍होंने लगभग सभी फ्री स्‍टाइल इंटरनेशनल पहलवानों को कोचिंग दी और जो गुरु हनुमान के शिष्‍य थे, वें आज खुद गुरु बनकर भारतीय कुश्‍ती को अधिक ऊंचाईयों तक लेकर जा रहे हैं.

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बतौर खिलाड़ी और कोच गुरु हनुमान दिग्‍गज थे. भारतीय कुश्‍ती में उनके योगदान के कारण उन्‍हें पितामाह कहा जाता है.

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दो बार के ओलंपिक मेडलिस्‍ट सुशील कुमार के गुरु सतपाल सिंह उनके शिष्‍य थे. उनकी कुश्‍ती के क्षेत्र में उपलब्धियों के कारण साल 1987 में द्रोणाचार्य पुरस्कार और साल 1983 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया.

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