जानें मंगल पांडे से क्यों
डरती थी अंग्रेजी हुकूमत

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अंग्रेजों के छक्के छुड़ा देने वाले क्रांतिकारी मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को हुआ था. उनके नाम से अंग्रेज थर्राते थे. 

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मंगल पांडे 18 साल की उम्र में ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैन्ट्री में सिपाही के तौर पर भर्ती हुए थे. 

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मंगल पांडे ने इस बात का विरोध किया और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. ये क्रांति भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम था. 

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29 मार्च 1857 को मंगल पांडे ने विद्रोह कर कारतूस का इस्तेमाल करने से मना कर दिया.

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जिसके चलते उन्हें सेना से निकाल दिया गया. पांडे ने विद्रोह करते हुए कई सिपाहियों को साथ ले लिया और अंग्रेज अफसर पर हमला बोल दिया. उन्होंने 'मारो फिरंगी को' का नारा भी दिया.

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कहा जाता है अंग्रेजों के इस कदम से मंगल पांडे इतने क्रोधित हो गए कि उन्होंने अंग्रेजों को खत्म करने की कसम खा ली.

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बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उनका कोर्ट मार्शल हुआ. मुकदमे के दौरान उन्होंने अंग्रेज अफसरों के खिलाफ विद्रोह की बात स्वीकार ली और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई.

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तय किया गया कि उन्हें 18 अप्रैल को फांसी दी जाएगी. लेकिन अंग्रेजों को डर था कि पांडे द्वारा फूंका गया बिगुल जल्द ही आग की तरह पूरे हिंदुस्तान में फैल जाएगा.

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विद्रोह की चिंगारी मेरठ की छावनी पहुंच गई थी. 10 मई 1857 को भारतीय सैनिकों ने मेरठ की छावनी में बगावत कर दी.

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अंग्रेजी हुकूमत इस बात से डर गई और उन्होंने फैसला किया कि 18 अप्रैल की जगह उन्हें 8 अप्रैल को फांसी दी जाएगी.