भारत का 'राजदंड' सेंगोल

ऐतिहासिक परंपरा को फिर से जीवित करने के लिए पीएम मोदी 28 मई को देश के नवनिर्मित संसद भवन में ऐतिहासिक ‘सेंगोल’ की स्थापना करेंगे.

सेंगोल (राजदंड) को सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक माना जाता है. जिस दिन नई संसद को देश को समर्पित किया जाएगा, उसी दिन तमिलनाडु के विद्वान सेंगोल को पीएम मोदी को सौंप देंगे.

नवनिर्मित संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर सेंगोल को वैदिक मंत्रोच्चार के साथ संसद भवन में स्पीकर की कुर्सी के बगल में रखा जाएगा. 

सेंगोल राष्ट्रीय इतिहास से जुड़ा एक पवित्र प्रतीक है, जिसका तमिलनाडु से गहरा नाता है.

तमिलनाडु के पुजारियों ने सरकार को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में 'सेंगोल' को भेंट किया था.

यह सेंगोल चोल साम्राज्य के समय से चली आ रही हमारी अपनी सभ्यतागत प्रथा का प्रतीक है. यह राजदंड चोल साम्राज्य में सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक था.

आखिरी बार सेंगोल राजदंड मुगल साम्राज्य (1526-1857) में इस्तेमाल किया गया था.

इसके बाद, 1600-1858 के बीच में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत पर अपने अधिकार के प्रतीक के रूप में सेंगोल राजदंड का उपयोग किया था.

14 अगस्त 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन ने पंडित जवाहर लाल नेहरु को इसे सौंप कर भारत का शासन भारतीयों के हाथों दिया था.

सदियों से भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर ऐतिहासिक सेंगोल को न्याय और निष्पक्षता का प्रतीक माना जाता है.

सेंगोल का अर्थ बड़ा गहरा है. यह शब्द तमिल भाषा के 'सेम्मई' से आता है, जिसका अर्थ है - नीति परायणता.