दिवाली का त्योहार देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है और महीने भर पहले से ही इसकी तैयारियां शुरू हो जाती हैं.
दिवाली से पहले घरों की साफ-सफाई की जाती है और बहुत से लोग अपने घरों की पुताई भी करवाते हैं.
दिवाली के त्योहार पर दीप जलाने, रंगोली बनाने, पूजा करने, मिठाई बांटने, पकवान बनाने और नए कपड़े पहनने का महत्व होता है.
उत्तर भारत में यह त्योहार पांच दिन का होता है जो धनतेरस से शुरू होकर नरक चतुर्दशी, दिवाली, गोवर्धन पूजा और फिर भाई दूज पर समाप्त होता है.
दिवाली महोत्सव की शुरुआत धनतेरस से होती है. इस दिन धन के देवता कुबेर, मृत्यू के देवता यमराज और आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरि की पूजा होती है. धनतेरस पर नए बर्तन, धातु या सोने के गहने खरीदने की परंपरा है.
नरक चतुर्दशी को काली चौदस भी कहते हैं. इसी दिन श्रीकृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध किया था. इस दिन सूर्योदय से पहले उबटन लगाकर स्नान करने की परंपरा है ताकि सभी पाप नष्ट हो जाएं.
तीसरे दिन दिवाली होती है और यह मुख्य पर्व है. इस दिन मां लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश की पूजा की जाती है. मां लक्ष्मी के स्वागत में दीप जलाए जाते हैं और उनके आगमन से हर कोने से अंधकार दूर हो जाते हैं.
चौथे दिन गोवर्धन पूजा होती है जिसे अन्नकूट पूजा भी कहते हैं. श्रीकृष्ण ने गोकुलवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाया था और तब से गोवर्धन पूजा की परंपरा शुरू हुई. इस दिन गोबर से घर के आंगन में गोवर्धन बनाकर पूजे जाते हैं.
उत्सव के आखिरी यानी पांचवे दिन भाई दूज मनाई जाती है और इस पर्व को यम द्वितीया भी कहते हैं. यह पर्व भाई-बहन के रिश्ते को प्रगाढ़ बनाने और भाई की लंबी उम्र के लिए मनाया जाता है.